कामदेव का आश्रम - बालकाण्ड (4)
>> Tuesday, October 13, 2009
दूसरे दिन ब्राह्म-मुहूर्त्त में निद्रा त्याग कर मुनि विश्वामित्र तृण शैयाओं पर विश्राम करते हुये राम और लक्ष्मण के पास जा कर बोले, "हे राम और लक्ष्मण! जागो। रात्रि समाप्त हो गई है। कुछ ही काल में प्राची में भगवान भुवन-भास्कर उदित होने वाले हैं। जिस प्रकार वे अन्धकार का नाश कर समस्त दिशाओं में प्रकाश फैलाते हैं उसी प्रकार तुम्हें भी अपने पराक्रम से राक्षसों का विनाश करना है। नित्य कर्म से निवृत होओ, सन्ध्या-उपासना करो। अग्निहोत्रादि से देवताओं को प्रसन्न करो। आलस्य को त्यागो और शीघ्र उठ जाओ क्योंकि अब सोने का समय नहीं है।"
गुरु की आज्ञा प्राप्त होते ही दोनों भाइयों ने शैया त्याग दिया और नित्यकर्म एवं स्नान-ध्यान आदि से निवृत होकर मुनिवर के साथ गंगा तट की ओर चल दिये। वे गंगा और सरयू के संगम, जहाँ पर ऋषि-मुनियों तथा तपस्वियों के शान्त व सुन्दर आश्रम बने हुये थे, पर पहुँचे। एक अत्यधिक सुन्दर आश्रम को देखकर रामचन्द्र ने गुरु विश्वामित्र से पूछा, "हे गुरुवर! यह परम रमणीक आश्रम किन महर्षि का निवास स्थान हैं?"
राम के प्रश्न के उत्तर में ऋषि विश्वामित्र ने बताया, " हे राम! यह एक विशेष आश्रम है। पूर्व काल में कैलाशपति महादेव ने यहाँ घोर तपस्या की थी। सम्पूर्ण विश्व उनकी तपस्या को देखकर विचलित हो उठा था। उनकी तपस्या से देवराज इन्द्र भयभीत हो गए और उन्होंने शंकर जी के तप को भंग करने का निश्चय किया। इस कार्य के लिये उन्होंने कामदेव को नियुक्त कर दिया। भगवान शिव पर कामदेव ने एक के बाद एक कई बाण छोड़े जिससे उनकी तपस्या में बाधा पड़ी। क्रुद्ध होकर महादेव ने अपना तीसरा नेत्र खोल दिया। उस तीसरे नेत्र की तेजोमयी ज्वाला से जल कर कामदेव भस्म हो गए। देवता होने के कारण कामदेव की मृत्यु नहीं हुई केवल शरीर ही नष्ट हुआ। इस प्रकार अंग नष्ट हो जाने के कारण उसका नाम अनंग हो गया और इस स्थान का नाम अंगदेश पड़ गया। यह भगवान शिव का आश्रम है किन्तु भगवान शिव के द्वारा यहाँ पर कामदेव को भस्म कर देने के कारण इसे कामदेव का आश्रम भी कहते हैं।"
गुरु विश्वामित्र की आदेशानुसार सभी ने वहीं रात्रि विश्राम करने का निश्चय किया। राम और लक्ष्मण दोनों भाइयों ने वन से कंद-मूल-फल लाकर मुनिवर को समर्पित किये और गुरु के साथ दोनों भाइयों ने प्रसाद ग्रहण किया। तत्पश्चात् स्नान, सन्ध्या-उपासना आदि से निवृत होकर राम और लक्ष्मण गुरु विश्वामित्र से अनेक प्रकार की कथाएँ तथा धार्मिक प्रवचन सुनते रहे। अन्त में गुरु की यथोचित सेवा करने के पश्चात् आज्ञा पाकर वे परम पवित्र गायत्री मन्त्र का जाप करते हुये तृण शैयाओं पर जा विश्राम करने लगे।
10 टिप्पणियाँ:
देवता होने के कारण कामदेव की मृत्यु नहीं हुई केवल शरीर ही नष्ट हुआ।
निष्कर्ष -जो देवता नहीं होते उन की शरीर नष्ट होने के साथ ही मृत्यु हो जाती है। कुछ भी शेष नहीं रहता।
यह वाल्मीकि रामायण के पात्र जाबालि का दर्शन है।
आदरणीय अवधिया जी,
बहुत ही सुन्दर....
बस आप लिखते जाइयेगा रुकियेगा मत.
टिपण्णी की चिंता मत कीजियेगा.
आपका यह प्रयास विफल नहीं होगा...
एक छोटी सी त्रुटी दिखी हैं...शायद हो भी या फिर नहीं भी..
नित्य कर्म से निवृत होओ, सन्ध्या-उपासना करो। अग्निहोत्रादि से देवताओं को प्रसन्न करो। आलस्य को त्यागो और शीघ्र उठ जाओ क्योंकि अब सोने का समय नहीं है।"
यहाँ पर 'संध्या-उपासना' शायद न हो...
देख लीजियेगा....बस
नाम बहुत ही ज्यादा खुश हुआ है पढ़ कर..आपकी लेखनी धाराप्रवाह है ...और भावः अद्वितीय...!!!
प्रणाम..
अदा जी,
मेरा उत्साह बढ़ाने के लिए आपका कोटिशः धन्यवाद! न तो मैं निराश हूँ और न ही मुझे टिप्पणियों का लालच है, सिर्फ एक क्षणिक से नैराश्य से प्रभावित हो गया था। अब जब कार्य शुरू कर दिया है तो इसे पूरा कर के ही दम लेंगे।
सन्ध्या-उपासना शब्द बिल्कुल सही है, सन्ध्या-उपासना प्रतिदिन दो बार अर्थात् प्रातः और सायं की जाती है, ऋषि वाल्मीकि ने लिखा हैः
कौसल्या युप्रजा राम पूर्वा सन्ध्या प्रवर्तते।
उत्तिष्ठ नरशार्दूल कर्तव्यं दैवमाह्निकम्॥
अर्थात् नरश्रेष्ठ राम! तुम्हारे जैसे पुत्र को पाकर महारनी कौसल्या सुपुत्रजननी कही जाती है! देखो, प्रातःकाल की सन्ध्या समय हो रहा है, उठो और प्रतिदिन किए जाने वाले देवसम्बन्धी कार्यों को पूर्ण करो।
संध्या समय संधि समय के अर्थ में जो प्रातः भी होता है अय्र सायं भी( जब दिन रात मिलते हैं)
शुभकामनाएँ!
अवधिया जी नमस्कार ...आप सबसे नेक काम कर रहे है ब्लागजगत में ...ऐसे सत्संग सबके पास पहुचाकर ...धन्य हो आप
प्रेरक सराहनीय कार्य हेतु आपका आभारी हूँ .
एक विदुषी की सहज जिज्ञासा और दूसरी का उसका शमन -कितना आह्लादकारी है ! और अवधिया जी इस लेखन से आपका रचनाकार पुरुषार्थ ग्रहण कर गया ! मेरा भी ज्ञानवर्धन -संधि से संध्या का भावबोध !
नतमस्तक ! चरैवेति चरैवेति !
अवधिया जी,
सुंदर कथावाचन के लिए साधुवाद...साथ ही अरविंद मिश्रा जी के अति समृद्ध शब्द-ज्ञान के लिए भी प्रणाम...
दीवाली आपके और घर वालों के लिए मंगलमयी हो...
जय हिंद...
आपकी धाराप्रवाह लेखन शैली के आगे नतमस्तक हूँ ... आगे बढ़ता हूँ ..
jankari k liye dhanyvad
lekin mera 1 prashan hai? jahan tak maine suna hai ki indra ne nahin balki mata parvati ne teer chalane ko kaha tha. kripya duvidha dur karen.
http://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B9%E0%A5%8B%E0%A4%B2%E0%A5%80_%E0%A4%95%E0%A5%80_%E0%A4%95%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%81
http://www.hindinest.com/kahani/holika.htm
http://www.chandamama.com/lang/story/12/30/0/274/HIN/3/stories.htm
http://astrobix.com/indian_festivals/holi/holika_katha.aspx
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