कथा प्रारम्भ - बालकाण्ड (1)
>> Sunday, October 11, 2009
कौशल प्रदेश, जिसकी स्थापना वैवस्वत मनु ने की थी, पवित्र सरयू नदी के तट पर स्थित है। सुन्दर एवं समृद्ध अयोध्या नगरी इस प्रदेश की राजधानी है। वैवस्वत मनु के वंश में अनेक शूरवीर, पराक्रमी, प्रतिभाशाली तथा यशस्वी राजा हुये जिनमें से राजा दशरथ भी एक थे। राजा दशरथ वेदों के मर्मज्ञ, धर्मप्राण, दयालु, रणकुशल, और प्रजापालक थे। उनके राज्य में प्रजा कष्टरहित, सत्यनिष्ठ एवं ईश्वरभक्त थी। उनके राज्य में किसी का किसी के भी प्रति द्वेषभाव का सर्वथा अभाव था।
एक दिन दर्पण में अपने कृष्णवर्ण केशों के मध्य एक श्वेत रंग के केश को देखकर महाराज दशरथ विचार करने लगे कि अब मेरे यौवन के दिनों का अंत निकट है और अब तक मैं निःसंतान हूँ। मेरा वंश आगे कैसे बढ़ेगा तथा किसी उत्तराधिकारी के अभाव में राज्य का क्या होगा? इस प्रकार विचार करके उन्होंने पुत्र प्राप्ति हेतु पुत्रयेष्ठि यज्ञ करने का संकल्प किया। अपने कुलगुरु वशिष्ठ जी को बुलाकर उन्होंने अपना मन्तव्य बताया तथा यज्ञ के लिये उचित विधान बताने की प्रार्थना की।.
उनके विचारों को उचित तथा युक्तियुक्त जान कर गुरु वशिष्ठ जी बोले, "हे राजन्! पुत्रयेष्ठि यज्ञ करने से अवश्य ही आपकी मनोकामना पूर्ण होगी ऐसा मेरा विश्वास है। अतः आप शीघ्रातिशीघ्र अश्वमेध यज्ञ करने तथा इसके लिये एक सुन्दर श्यामकर्ण अश्व छोड़ने की व्यवस्था करें।" गुरु वशिष्ठ की मन्त्रणा के अनुसार शीघ्र ही महाराज दशरथ ने सरयू नदी के उत्तरी तट पर सुसज्जित एवं अत्यन्त मनोरम यज्ञशाला का निर्माण करवाया तथा मन्त्रियों और सेवकों को सारी व्यवस्था करने की आज्ञा दे कर महाराज दशरथ ने रनिवास में जा कर अपनी तीनों रानियों कौशल्या, कैकेयी और सुमित्रा को यह शुभ समाचार सुनाया। महाराज के वचनों को सुन कर सभी रानियाँ प्रसन्न हो गईं।
18 टिप्पणियाँ:
क्या बात है अवधिया जी.........
कमाल कर दिया.......
बहुत दिन क्षमा करें, बहुत वर्ष पहले वाल्मीकि रामायण का पठन किया था
अब आपके सौजन्य से फ़िर हो जाएगा..........
धन्यवाद और बधाइयां
acchi shuruat hai..
अलबेजा जी की तरफ से आना हुआ सोचा, 'चलते चलते' देख लिया जाये, गूगल की दान पेटी हटा दिजिये, यह इसका उचित स्थान नहीं है उसके लिये तो आपके पास ब्लाग है ही,
धन्यवाद कैरानवी जी!
आपकी सलाह उचित है और एडसेंस हटाया जा रहा है।
आदरणीय अवधिया जी,
आपने यह बहुत ही बढ़िया काम की शुरुआत की है...हम जैसे लोगों को ऐसा सुअवसर कहाँ मिलता वाल्मीकि रामायण पढने का....ह्रदय से आभारी हैं आपके.....और प्रतीक्षा भी कर रहे हैं.....अगले कथावस्तु की....
सुंदर कथा।
अवधियां जी आपने तो यह सचमुच बहुत अच्छा काम शुरू किया है -हाँ साहित्य स्रोत भी देते चलें -जैसे यदि सीधे वाल्मीकि से लिया है तो किस अध्याय से किस अध्याय तक की कथा है .बहुत आभार !
मिश्रा जी,
टिप्पणी के लिए धन्यवाद!
मुख्य साहित्य श्रोत पहली गीताप्रेस और दूसरी देहाती पुस्तक भण्डार से प्रकाशित क्रमशः सम्पूर्ण वाल्मीकि रामायण और संक्षिप्त वाल्मीकि रामायण हैं।
अच्छा लगा,वाल्मीकी रामायण के बारे में,अगले लेख की प्रतीक्षा रहेगी ।
Aadarniya Awadhiya ji....bahut achcha laga padh ke..........
Maine school mein padhi thi Valmiki Ramayan......... aur aaj aapne padhai........ dhanyawaaad......aur Geeta Press to Hamare Gorakhpur ki shaan hai hi.........
mere paas Geeta Press ki Valmiki Ramayan hai........ abhi Gorakhpur ja raha hoon........ aur Geeta press ki qitaabon ki zaroorat hogi to bataiyega.....
saadar
mahfooz
JAI HIND
दशहरे में गाँव गया था। अपने जन्म के पहले से ही पिताजी के द्वारा बहुत दिनों तक पढ़ी गई वाल्मीकि रामायण से साक्षात्कार हुआ। बहुत दिनों बाद (हाँ बारहवीं तक मैं उसे पढ़ कर और चित्रों को देख कर सम्मोहित होता रहा था) एक बार पुन: ढेर सारे प्रिय प्रसंग पढ़ गया और आदि कवि की मानव चेतना से प्रभावित हुआ। पिताजी तो अब तुलसी रामचरित मानस पढ़ते हैं।
एक पोस्ट लिखने को था - आलसी को समय तो लगना ही था कि आप ने बाजी मार ली।
अच्छा ही हुआ . . .
हमारे माता पिता ने घर का एक वातावरण बनाए रख कर हमें बचपन से ही अपनी उदात्त परम्परा से जोड़े रखा। नए जमाने में इंटरनेट के द्वारा हम वह काम जारी रख सकते हैं।
हो सके तो कुछ मार्मिक प्रसंग वाले संस्कृत श्लोक भी देवें न - सरल अर्थ तो गीताप्रेस वालों ने दिए ही हैं।
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किराना घराने की रागदारी यहाँ न चले तो ही ठीक है। लच्छन अच्छे नहीं दिखते।
गिरिजेश जी,
टिप्पणी के लिए धन्यवाद!
मैं फिलहाल वाल्मीकि रामायण को संक्षिप्त और कथा के रूप में ही प्रस्तुत कर रहा हूँ ताकि रोचकता बनी रहे और लोगों की रुचि इस विषय में बढ़े। बीच बीच में श्लोक डालने से बहुत से लोग, जो कि कथा वाला रूप पसंद करते हैं, ऊबने लगेंगे। इसलिए फिलहाल तो सिर्फ कथा के रूप में। वाल्मीकि रामायण बहुत वृहत् है फिर भी प्रयास करूँगा कि अधिक से अधिक जानकारी इसमें समाहित होते जाएँ।
लोगों की रुचि बढ़ी तो फिर सम्पूर्ण वाल्मीकि रामायण की श्रृंखला भी आरम्भ करेंगे जिसमें वाल्मीकि रामायण के समस्त श्लोक अर्थ सहित रहेगा।
प्रिय अवधिया जी,
यह श्री रामजी की ही कृपा है कि वे आपसे ऐसा महत्वपूर्ण कार्य करवा रहे हैं.... श्री राम, श्री हनुमान आपको इस यज्ञ को पूर्ण करने की शक्ति दें..यह हमारी अभिलाषा है....
बहुत बढ़िया कदम !!
बहुत बहुत बधाईयां और शुभकामनाएं |
|| जय श्री राम ||
|| जय हिंद ||
अवधिया जी,
शुभ कार्य के शुभारंभ के लिये आपको शुभ कामनाएं!!!
आने वाली पिढियों को कुछ अच्छा पढने के लिये मिलेगा.... और हमें भी.
प्रयास जारी रखें.
शुभकामनाएं.
इससे पहले चिट्ठाजगत में शुक्लजी व जितु भाई द्वारा रामायण रखे जाने का सफल प्रयास हुआ था.
आपका टिव्वीटर खाता हो तो रोज एक श्लोक गीता से वहाँ डाल सकते है. यह भी अच्छा काम होगा. इसे मात्र एक सुझाव माने. विचार आया तो लिख दिया.
बहुत सुन्दर प्रयास और बहुप्रशंसनीय!
अवधिया जी आपके इस सुन्दर प्रयास को मेरा प्रणाम |
ऐसे महान प्रयास के पीछे इश्वार का आर्शीवाद जरुर रहता है | इश्वर आपको नित नई ऊर्जा दें और आप दुगुने गति से ऐसे महान कार्य को संपन्न करें ये मेरी कामना है |
और अब समझ लीजिये की मैं आपके इस चिट्ठे से चिपक गया हूँ | देर सवेर ही सही पर हर कड़ी पढने की पूरी कोशिश रहेगी |
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