मेधनाद हनुमान युद्ध - सुन्दरकाण्ड (13)
>> Friday, February 26, 2010
जम्बुवाली के वध का समाचार पाकर निशाचरराज रावण को बहत क्रोध आया। उसने सात मन्त्रिपुत्रों को और पाँच बड़े-बड़े नायकों को बुला कर आज्ञा दी कि उस दुष्ट वानर को जीवित या मृत मेरे सम्मुख उपस्थित करो। राक्षसराज की आज्ञा पाते ही सातों मन्त्रिपुत्र और पाँच नायक नाना प्रकार के शस्त्रास्त्रों से सुसज्जित असंख्य राक्षस सुभटों की एक विशाल सेना लेकर हो अशोकवाटिका की ओर चल पड़े। इस शत्रु सेना को आते देख पवनपुत्र हनुमान ने किटकिटा कर बड़ी भयंकर गर्जना की। इस घनघोर गर्जन को सुनते ही अनेक सैनिक तो भय से ही मूर्छित हो पृथ्वी पर गिर पड़े। अनेक के कानों के पर्दे फट गये। कुछ ने हनुमान का भयंकर रूप और मृत राक्षस वीरों से पटी भूमि को देखा तो उनका साहस छूट गया और वे मैदान से भाग खड़े हुये। अपनी सेना को इस प्रकार पलायन करते देख मन्त्रिपुत्रों ने हनुमान पर बाणों की बौछार आरम्भ कर दी। बाणों के आघात से बचने के लिये हनुमान आकाश में उड़ने और शत्रुओं को भ्रमित करने लगे। आकाश में उड़ते वानरवीर पर राक्षस सेनानायक ठीक से लक्ष्य नहीं साध पा रहे थे। इसके पश्चात् वे भयंकर गर्जना करते हुये राक्षस दल पर वज्र की भाँति टूट पड़े। कुछ को उन्होंने वृक्षों से मार-मार कर धराशायी किया और कुछ को लात-घूँसों, तीक्ष्ण नखों तथा दाँतों से क्षत-विक्षत कर डाला।
इस प्रकार उन्होंने जब सात मन्त्रिपुत्रों को यमलोक पहुँचा दिया तो विरूपाक्ष, यूपाक्ष, दुर्धर्ष, प्रघर्स और भासकर्ण नामक पाँचों नायक तीक्ष्ण बाणों से हनुमान पर आक्रमण करने लगे। जब दुर्धर्ष ने एक साथ पाँच विषैले बाण छोड़ कर उनके मस्तक को घायल कर दिया तो वे भयंकर गर्जना करते हुये आकाश में उड़े। दुर्धर्ष भी उनका अनुसरण करता हुआ आकाश में उड़ा और वहीं से उन पर बाणों की वर्षा करने लगा। यह देख कर दाँत किटकिटाते हुये पवनपुत्र दु्धर्ष के ऊपर कूद पड़े। इस अप्रत्याशित आघात को न सह पाने के कारण वह तीव्र वेग से पृथ्वी पर गिरा, उसका सिर फट गया और वह मर गया। दुर्धर्ष को इस प्रकार मार कर हनुमान ने एक साखू का वृक्ष उखाड़ कर ऐसी भयंकर मार-काट मचाई कि वे चारों नायक भी अपनी सेनाओं सहित धराशायी हो गये। कुछ राक्षस अपने प्राण बचा कर बेतहाशा दौड़ते हुये रावण के दरबार में पहुँच गये और वहाँ जाकर उसे सब योद्धाओं के मारे जाने का समाचार दिया।
जब रावण ने एक अकेले वानर के द्वारा इतने पराक्रमी नायकों तथा विशाल सेना के विनाश का समाचार सुना तो उसे बड़ा आश्चर्य और क्रोध हुआ। उसने अपने वीर पुत्र अक्षयकुमार को एक विशाल सेना के साथ अशोकवाटिका में भेजा। अक्षयकुमार ने हनुमान को दूर से देखते ही उन पर आक्रमण कर दिया। अवसर पाकर जब अंजनिपुत्र ने उसके समस्त अस्त्र-शस्त्रों को छीन कर तोड़ डाला तो अक्षयकुमार उनसे मल्लयुद्ध करने के लिये भिड़ गया। परन्तु वह हनुमान से पार न पा सका। हनुमान ने उसे पृथ्वी पर से इस प्रकार उठा लिया जिस प्रकार गरुड़ सर्प को उठा लेता है। फिर दोनों हाथों से बल लगा कर मसल डाला जिससे उसकी हड्डियाँ-पसलियाँ टूट गईं और वह चीत्कार करता हुआ यमलोक चला गया।
जब रावण ने अपने प्यारे पुत्र अक्षयकुमार की मृत्यु का समाचार सुना तो उसे बहुत दुःख हुआ। उसके क्रोध का अन्त न रहा। उसने अत्यन्त कुपित होकर अपने परमपराक्रमी पुत्र मेघनाद को बुला कर कहा, "हे मेघनाद! तुमने घोर तपस्या करके ब्रह्मा से जो अमोघ अस्त्र प्राप्त किये हैं, उनके उपयोग का समय आ गया है। जाकर उस वानर को मृत्यु-दण्ड दो, जिसने तुम्हारे वीर भाई और बहुत से राक्षस योद्धाओं का वध किया है।" पिता की आज्ञा पाकर परम पराक्रमी मेघनाद भयंकर गर्जना करता हुआ हनुमान से युद्ध करने के लिये चला।
जब तोरण द्वार पर बैठे हुये हनुमान ने रथ पर सवार होकर मेघनाद को अपनी ओर आते देखा तो उन्होंने भयंकर गर्जना से उसका स्वागत किया। इससे चिढ़ कर मेघनाद ने स्वर्णपंखयुक्त तथा वज्र के सदृश वेग वाले बाणों की उन पर वर्षा कर दी। इस बाण-वर्षा से बचने के लिये हनुमान पुनः आकाश में उड़ गये और पैंतरे बदल-बदल कर उसके लक्ष्य को व्यर्थ करने लगे। जब मेघनाद के सारे अमोघ अस्त्र लक्ष्य भ्रष्ट होकर व्यर्थ जाने लगे तो वह भारी चिन्ता में पड़ गया। फिर कुछ सोच कर उसने विपक्षी को बाँधने वाला ब्रह्मास्त्र छोड़ा और उससे हनुमान को बाँध लिया। फिर उन्हें घसीटता हुआ रावण के दरबार में पहुँचा।
4 टिप्पणियाँ:
Durlabh Yudh ka varnan!!!
Aap se aisee he Ummeed thi
Durlabh Yudh ka varnan!!!
Aap se aisee he Ummeed thi
बहुत रोचक वर्णन है । धन्यवाद आपको होली की हार्दिक शुभकामनायें
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