वालि-राम संवाद - किष्किन्धाकाण्ड (5)

>> Saturday, November 21, 2009

वालि को पृथ्वी पर गिरते देख राम और लक्ष्मण उसके पास जा कर खड़े हो गये। जब वालि की चेतना लौटी और उसने दोनों भाइयों को अपने सम्मुख खड़े देखा तो वह कठोर शब्दों में बोला, "हे रघुनन्दन! आपने छिप कर जो मुझ पर आक्रमण किया, उससे आपने कौन सा गुण प्राप्त कर लिया? किस महान यश का उपार्रजन कर लिया? यद्यपि तारा ने सुग्रीव की और आपकी मैत्री के विषय में मुझे बताया था, परन्तु मैंने आपकी वीरता, शौर्य, पराक्रम, धर्मपरायणता, न्यायशीलता आदि गुणों को ध्यान में रखते हुये उसकी बात नहीं मानी थी और कहा था कि न्यायशील राम कभी अन्याय नहीं करेंगे। आज मुझे ज्ञात हुआ कि आपकी मति मारी गई है। आप दिखावे के लिये धर्म का चोला पहने हुए हैं, वास्तव में आप अधर्मी हैं। आप साधु पुरुष के वेष में एक पापी हैं। मेरा तो आपके साथ कोई बैर भी नहीं है। फिर आपने यह क्षत्रियों को लजाने वाला कार्य क्यों किया? आप नरेश हैं। राजा के गुण साम, दाम, दण्ड, भेद, दान, क्षमा, सत्य, धैर्य और विक्रम होते हैं। कोई राजा किसी निरपराध को दण्ड नहीं देता। फिर आपने मेरा वध क्यों किया है? हे राजकुमार! यदि आपने मेरे समक्ष आकर मुझसे युद्ध किया होता तो आप अवश्य ही मेरे हाथों मारे गये होते। जिस उद्देश्य के लिये आप सुग्रीव की सहायता कर रहे हैं उसी उद्देश्य को यदि आपने मुझसे कहा होता तो मैं एक ही दिन में मिथिलेश कुमारी को ढूँढ कर आपके पास ला देता। आपकी पत्नी का अपहरण करने वाले दुरात्मा राक्षस रावण के गले में रस्सी बाँध कर आपके समक्ष प्रस्तुत कर देता। आपने अधर्मपूर्वक मेरा वध क्यों किया?"

वालि के कठोर वचनों को सुन कर रामचन्द्र ने कहा, "वानर! धर्म, अर्थ, काम और लौकिक सदाचार के विषय तुम्हें ज्ञान ही नहीं है। तुम अपने वानरोचित चपलतावश तुम व्यर्थ ही मुझ पर क्रोधित हो रहे हो। मैंने तुम्हारा वध अकारण या व्यक्तिगत बैरभाव के कारण से नहीं किया है। सौम्य! पर्वतों, वनों और काननों से युक्त सम्पूर्ण भू-मण्डल इक्ष्वाकु वंश के राजाओं की है। इस समय धर्मात्मा राजा भरत इस पृथ्वी का पालन कर रहे हैं। उनकी आज्ञा से हम समपूर्ण पृथ्वी में विचरण करते हुए धर्म के प्रचार के लिये साधुओं की रक्षा तथा दुष्टों का दमन कर रहे हैं। तुमने अपने जीवन में काम को ही प्रधानता दिया और राजोचित मार्ग पर स्थिर नहीं रहे। छोटा भाई, पुत्र और शिष्य तीनों पुत्र-तु्ल्य होते हैं। तुमने इस धर्माचरण को त्याग कर अपने छोटे भाई सुग्रीव की पत्नी रुमा का हरण किया जो धर्मानुसार तुम्हारी पुत्रवधू हुई। उत्तम कुल में उत्पन्न क्षत्रिय और राजा का प्रतिनिधि होने के कारण तुम्हारे इस महापाप का दण्ड देना मेरा कर्तव्य था। जो पुरुष अपनी कन्या, बहन अथवा अनुजवधू के पास कामबुद्धि से जाता है, उसका वध करना ही उसके लिये उपयुक्त दण्ड माना गया है। इसीलिये मैंने तुम्हारा वध किया। वानरश्रेष्ठ! अपने इस कार्य के लिये मेरे मन में किसी प्रकार संताप नहीं है। मैंने तुम्हें तुम्हारे पिछले पापों का दण्ड दे कर आगे के लिये तुम्हें निष्पाप कर दिया है। अब तुम निष्पाप हो कर स्वर्ग जाओगे।"

राम का तर्क सुन वालि ने हाथ जोड़कर कहा, "हे राघव! आपका कथन सत्य है। मुझे अपनी मृत्यु पर दुःख नहीं है। मेरा पुत्र अंगद मुझे अत्यन्त प्रिय है और मुझे केवल उसी की चिन्ता है। वह अभी बालक है। उसकी बुद्धि अभी परिपक्व नहीं हुई है। उसे मैं आपकी शरण में सौंपता हूँ। आप इसे सुग्रीव की भाँति ही अभय दें, यही आपसे मेरी प्रार्थना है।"

इतना कह कर वालि चुप हो गया और उसके प्राण पखेरू उड़ गये।

10 टिप्पणियाँ:

Arvind Mishra November 21, 2009 at 12:55 PM  

"जो पुरुष अपनी कन्या, बहन अथवा अनुजवधू के पास कामबुद्धि से जाता है, उसका वध करना ही उसके लिये उपयुक्त दण्ड माना गया है।"

यही शास्त्रोक्त है और शिरोधार्य !

Dr. Shreesh K. Pathak November 22, 2009 at 11:22 AM  

सुभास्य ..!!!

स्वप्न मञ्जूषा November 29, 2009 at 3:44 AM  

वही बात यहाँ भी कहूँगी...रुमा अनुज की पत्नी का हरण .....महा पाप है......माना श्री राम जी ने सुग्रीव की सहायता की...बाली का पाप भी क्षमा के योग्य नहीं था ...परन्तु राम जी को छुप कर वार करने की आवश्यकता नहीं थी....यह मेरी सोच है...बस...

Rakesh Singh - राकेश सिंह June 29, 2010 at 11:03 AM  

मैंने तो ये सुना है की बलि को एक वरदान मिला था की जो कोई भी उसके सम्मुख होकर युद्ध करेगा उसका आधा बल बलि को मिल जाएगा. हो सकता है इसी वरदान की लाज रखने के लिए श्री राम ने छुप कर वार किया....

उपरोक्त बातों के सम्बन्ध में हो सकता है मेरा ज्ञान आधा अधुरा हो ... और यदि ऐसा है तो क्षमा प्रार्थी हूँ

vishu August 21, 2011 at 5:11 PM  

yadi koi apni bhen or chote bahi ki ptani ke pass kam bas jata hai tho uska badh kisi bhi drsthi se uchit hoga or prbhu shri ram us samye ichabaku vansjo ke raja the or bali ek banar or vo bhi uddadand banar tho uska us samye akhet kiya tha jom ki us samye uciht tha

Unknown April 7, 2019 at 5:00 PM  

Hum janna chahte hai ki ram ji ke bal ka kya sima haj.... Koi batayenge

Unknown November 8, 2019 at 8:41 PM  

Kya ramayan ya ramcharit manas me kahi aisa likha h ki Baali ne ,sugriv ki patni k sath durvayvhar kiya tha

Unknown April 7, 2020 at 7:10 PM  

हे भारती तुम्हें मेरा शत शत नमन 🙏 जिस प्रकार रावण की नाभी में जब तक तीर नहीं लगे तब तक उसका वध करना संभव नहीं था। ऐसा उसे परम पिता ब्रह्मा जी का वरदान था किंतु विभीषण ने जब यह राज भगवान श्रीराम चन्द्र को बताया तभी रावण का वध हुआ। इसी प्रकार जब सुग्रीव ने श्रीराम को बताया कि उसे वरदान है कि बाली के समक्ष लड़ने वाले की आधी शक्ति बाली में आ जाती है तो बाली को मारा जाना मुश्किल था। इसलिए बाली पर छुप कर तीर चलाया गया था। लेकिन भगवान श्रीराम मर्यादा पुरुषोत्तम थे। जब द्वापर युग में महाभारत युद्ध के पश्चात भगवान श्रीकृष्ण एक नदी के किनारे पानी पी रहे होते हैं तभी एक शिकारी वहां आता है जो भगवान श्रीकृष्ण के सफेद तलुवों को मृग पग समझता है तुरंत तीर चला देता है जो तीर भगवान श्रीकृष्ण के तलुए पर लगता है
मैने कहा तलुवों पर यानि कोई भी व्यक्ति आराम से बच सकता है लेकिन जब वो शिकारी भगवान श्रीकृष्ण से मांफी मांगता है तो भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि यह दंड मुझे त्रेतायुग में बाली वध की वजह से मिला है
जो जैसा कर्म करेगा वैसा ही फल भुगतेगा फिर चाहे वो नर हो पशु हो जलचर हो या नभचर या स्वयं भगवान हो 🙏🙏💐💐
हे देवी शायद आपके प्रश्नों का उत्तर मिल गया हो।
में आशा करता हूँ
तारा सिंह बिष्ट

Unknown May 20, 2020 at 9:49 PM  

हा

Unknown June 22, 2021 at 4:41 PM  

Kya nark ram chalta tha nark k ke kary to garud or jatyu k the or yam lok dharma Raj ki to ram to nark ka bhagi huaa usne chup kar car kar go krishna rupi ram 6 hi loko ko hara or parthvi ho vekuda h us par adhiptay jamya sabhi karyo ko karne ka thekedar tha usne amrat Maniya lachmi sita darpati mandhodari parvati Tara jesi devi ko sati bana diya

  © Blogger templates Inspiration by Ourblogtemplates.com 2008

Back to TOP