राजा नृग की कथा - उत्तरकाण्ड (9)
>> Monday, May 17, 2010
एक दिन लक्ष्मण ने श्रीराम से कहा, "महाराज! आप राजकाज में इतने व्यस्त रहते हैं कि अपने स्वास्थ्य का भी ध्यान नहीं रखते।"
यह सुनकर रामचन्द्रजी बोले, "लक्ष्मण! राजा का कर्तव्य होता है राजकाज में पूर्णतया लीन रहना। तनिक सी असावधानी हो जाने पर उसे राजा नृग की भाँति भयंकर यातना भोगनी पड़ती है।"
लक्ष्मण के जिज्ञासा करने पर उन्होंने राजा नृग की कथा सुनाते हुये कहा, "पहले इस पृथ्वी पर महायशस्वी राजा नृग राज्य करते थे। वे बड़े धर्मात्मा और सत्यवादी थे। एक बार उन्होंने तीर्थराज पुष्कर में जाकर स्वर्ण विभूषित बछड़ों युक्त एक करोड़ गौओं का दान किया। उसी समय उन गौओं के साथ एक दरिद्र ब्राह्मण की गाय बछड़े सहित आकर मिल गई और राजा नृग ने संकल्पपूर्वक उसे किसी ब्राह्मण को दान कर दिया। उधर वह दरिद्र ब्राह्मण वर्षों तक स्थान-स्थान पर अपनी गाय को ढूँढता रहा। अन्त में उसने कनखल में एक ब्राह्मण के यहाँ अपने गाय को पहचान लिया। गाय का नाम 'शवला' था। जब उसने गाय को नाम लेकर पुकारा तो वह गाय उस दरिद्र ब्राह्मण के पीछे हो ली। इस पर दोनों ब्राह्मणों में विवाद हो गया। एक कहता था, गाय मेरी है और दूसरा कहता कि मुझे यह राजा ने दान में दी है। दोनों झगड़ते हुये राजा नृग के यहाँ पहुँचे। राजकाज में व्यस्त रहने के कारण जब कई दिन तक नृग ने उनसे भेंट नहीं की तो उन्होंने शाप दे दिया कि विवाद का निर्णय कराने की इच्छा से आये प्रार्थियों को तुमने कई दिन तक दर्शन नहीं दिये, इसलिये तुम प्राणियों से छिपकर रहने वाले गिरगिट हो जाओगे और सहस्त्रों वर्ष तक गड्ढे में पड़े रहोगे। भगवान विष्णु जब कृष्ण के रूप में अवतार लेंगे तब वे ही तुम्हारा उद्धार करेंगे। इस प्रकार राजा नृग आज भी अपनी उस भूल का दण्ड भुगत रहे हैं। अतएव जब भी कोई कार्यार्थी द्वार पर आये, उसे सदा मेरे सामने तत्काल उपस्थित किया करो।"
राम का आदेश सुनकर लक्ष्मण बोले, "राघव! ब्राह्मणों का शाप सुनकर राजा नृग ने क्या किया?"
इस प्रश्न के उत्तर में श्रीराम ने बताया, "जब दोनों ब्राह्मण शाप देकर चले गये तो राजा ने अपने मन्त्री को भेजकर उन्हें वापिस बुलाया और उनसे क्षमायाचना की। फिर एक सुन्दर सा गड्ढा बनवाकर और अपने राजकुमार वसु को अपना राज्य सौंपकर उस गड्ढे में निवास करने लगे। ब्राह्मण के शाप का भारी प्रभाव होता है।"
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