रावण का युद्ध के लिये प्रस्थान - युद्धकाण्ड (18)
>> Tuesday, April 6, 2010
अपने पुत्र इन्द्रजित की मृत्यु का समाचार सुनकर रावण दुःखी एवं व्याकुल हो विलाप करने लगा। फिर पुत्रवध के प्रतिशोध की ज्वाला ने उसे अत्यन्त क्रुद्ध कर दिया। वह राक्षसों को एकत्रित कर बोला, "हे निशाचरों! मैंने घोर तपस्या करके ब्रह्माजी से अद्भुत कवच प्राप्त किया है। उसके कारण मुझे कभी कोई देवता या राक्षस पराजित नहीं कर सकता। देवासुर संग्राम में प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने मुझे बाण सहित विशाल धनुष भी दिया है। आज मैं उसी धनुष से राम-लक्ष्मण का वध करूँगा। मेरे पुत्र मेघनाद ने वानरों को भ्रम में डालने के लिये माया की सीता बनाकर उसका वध किया था, परन्तु मैं आज वास्तव में सीता का वध करके उस झूठ को सत्य कर दिखाउँगा।"
इतना कहकर वह चमचमाती हुई तलवार लेकर सीता को मारने के लिये अशोकवाटिका में जा पहुँचा।
रावण को यह नीच कर्म करने के लिये तैयार देखकर रावण के एक विद्वान और सुशील मन्त्री सुपार्श्व ने उसे रोकते हुये कहा, "महाराज दशग्रीव! आप प्रकाण्ड पण्डित और वेद-शास्त्रों के ज्ञाता हैं। क्रोध के वशीभूत होकर आप सीता की हत्या क्यों करना चाहते हैं। किन्तु क्या क्रोध के कारण धर्म को भूलना उचित है? आप सदैव धैर्यपूर्वक कर्तव्य का पालन करते आये हैं। इसलिये यह अनुचित कार्य न करें और हमारे साथ चलकर रणभूमि में राम पर अपना क्रोध उतारें।"
मन्त्री के वचन सुनकर रावण वापस अपने महल लौट गया। वहाँ मन्त्रियों के साथ आगे की योजना पर विचार करने लगा। फिर बोला, "कल हमको पूरी शक्ति से राम पर आक्रमण कर देना चाहिये।"
रावण की आज्ञा पाकर दूसरे दिन प्रातःकाल लंका के वीर राक्षस नाना प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित होकर वानर सेनाओं से जा भिड़े। परिणाम यह हुआ कि दोनों ओर के वीरों द्वारा किये गये आक्रमण और प्रतिआक्रमण से समरभूमि में रक्त की धारा बह चली जो मृत शरीरों को लकड़ी की तरह बहा रही थी। जब राक्षसों ने वानर सेना की मार-मार कर दुर्गति कर दी तो स्वयं श्री राम ने वानरों पर आक्रमण करती हुई राक्षस सेना का देखते-देखते इस प्रकार सफाया कर दिया जिस प्रकार से तेजस्वी सूर्य की किरणें रात्रि के तम का सफाया कर देती हैं। उन्होंने केवल आधे पहर में दस हजार रथों, अठारह हजार हाथियों, चौदह हजार अश्वारोही वीरों और दो लाख पैदल सैनिकों को मार गिराया।
जब लंका में इस भयानक संहार की सूचना पहुँची तो सारे नगर में हाहाकार मच गया। राक्षस नारियाँ अपने पिता, पति, पुत्र, भाई आदि का स्मरण कर करके भयानक क्रन्दन करने लगीं। रावण ने क्रुद्ध, दुःखी और शोकाकुल होकर महोदर, महापार्श्व और विरूपाक्ष को युद्ध करने के लिये बुला भेजा। उनके आने पर वह स्वयं भी करोड़ों सूर्यों के समान दीप्तिमान तथा आठ घोड़ों से सुसज्जित रथ पर बैठकर उन्हें साथ ले युद्ध करने को चला। उसके चलते ही मृदंग, पाह, शंख आदि नाना प्रकार के युद्धवाद्य बजने लगे। महापार्श्व, महोदर और विरूपाक्ष भी अपने-अपने रथों पर सवार होकर उसके साथ चले। उस समय सूर्य की प्रभा फीकी पड़ गई। सब दिशाओं में अन्धेरा छा गया। भयंकर पक्षी अशुभ बोली बोलने लगे। धरती काँपती सी प्रतीत होने लगी, ध्वज के अग्रभाग पर गृद्ध आकर बैठ गया। बायीं आँख फड़कने लगी। किन्तु इन भयंकर अशुभ लक्षणों की ओर ध्यान न देकर रावण अपनी सेना सहित युद्धभूमि में जा पहुँचा।
6 टिप्पणियाँ:
वधिया जी मुझे कल यहाँ अमेरिका मे एक भारतीय ने पूछाकि क्या कोई कविता के रूप मे छोटी सी रामायण किसी ने लिखी है जिसे यहाँ अमेरिका मे रहने वाले बच्चे याद कर सकें तो मुझे एक दम आपका नाम याद आया कि आपसे पूछूँगी। वो दम्पति कहता कि आप किसी लेखक से कहें कि अइसी पुस्तक रमायण पर कविता के रूप मे लिखें जिसे बच्चे याद कर सकें संक्षिप्त रामायण । क्या आप बता सकते हैं? ये काम मुझे लगता है कि आप ही कर सकते है। अगर कुछ पता हो तो कृपा मुझे ई मेल करें । धन्यवाद्
सियावर राम चंद्र की जय पवनसुत हनुमान की जय।
अब मचा चिखाही रावण ला, भगवान हाँ
अब मजा आही सीता हरण के फ़ल जो मिलही,
अनुज वधु भगिनि सुत नारि
सुनु शठ ये कन्या सम चारि
इनहिं कुदृष्टि बिलौके जोई
ताही बधे कछु पाप ना होई
जय मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान रामचंद्र की।
निर्मला जी,
कविता के रूप में छोटी सी रामायण तो मैंने भी अब तक कहीं नहीं देखा है। मूलतः मैं कवि नहीं हूँ किन्तु आपका विश्वास मुझे प्रेरित कर रहा है कि मैं रामायण को एक छोटी कविता के रूप ढालने का प्रयास करूँ।
यदि अपने प्रयास में सफल हुआ तो आपको सूचित करूँगा।
गोपाल कृष्ण अवधिया
@निर्मला जी : रामचरिमानस के उत्तरकाण्ड में तुलसीदासजी ने गरुड़जी का काकभुशुण्डि से रामकथा और राम महिमा सुनने का वर्णन करते समय सम्पूर्ण रामचरिमानस को चंद दोहों में लिख दिया है. उत्तरकाण्ड के दोहे ६३ क से ६८ तक सम्पूर्ण रामचरितमानस की मुख्य घटनाओ को काव्य रूप में प्रस्तुत किया गया है.
@अवधिया जी : आपके ब्लॉग पर राम कथा पढ़ कर बहुत अच्छा लग रहा है. आपने बहुत सरल ढंग से व्याख्या की है. वैसे युद्धकाण्ड या लंकाकाण्ड में वो प्रसंग जिसे हम विभीषण गीता भी कहते है वो प्रसंग इस काण्ड में मुझे सर्वाधिक प्रिय है. यहाँ पर उसका कुछ जिक्र करने की गुस्ताखी कर रहा हूँ.
रावण को रथ पर और श्री रघुवीर को बिना रथ के देखकर विभीषण अधीर हो गए। प्रेम अधिक होने से उनके मन में सन्देह हो गया (कि वे बिना रथ के रावण को कैसे जीत सकेंगे)। श्री रामजी के चरणों की वंदना करके वे स्नेह पूर्वक कहने लगे हे नाथ! आपके न रथ है, न तन की रक्षा करने वाला कवच है और न जूते ही हैं। वह बलवान् वीर रावण किस प्रकार जीता जाएगा? कृपानिधान श्री रामजी ने कहा- हे सखे! सुनो, जिससे जय होती है, वह रथ दूसरा ही है | शौर्य और धैर्य उस रथ के पहिए हैं। सत्य और शील (सदाचार) उसकी मजबूत ध्वजा और पताका हैं। बल, विवेक, दम (इंद्रियों का वश में होना) और परोपकार- ये चार उसके घोड़े हैं, जो क्षमा, दया और समता रूपी डोरी से रथ में जोड़े हुए हैं | ईश्वर का भजन ही (उस रथ को चलाने वाला) चतुर सारथी है। वैराग्य ढाल है और संतोष तलवार है। दान फरसा है, बुद्धि प्रचण्ड शक्ति है, श्रेष्ठ विज्ञान कठिन धनुष है | निर्मल (पापरहित) और अचल (स्थिर) मन तरकस के समान है। शम (मन का वश में होना), (अहिंसादि) यम और (शौचादि) नियम- ये बहुत से बाण हैं। ब्राह्मणों और गुरु का पूजन अभेद्य कवच है। इसके समान विजय का दूसरा उपाय नहीं है | हे सखे! ऐसा धर्ममय रथ जिसके हो उसके लिए जीतने को कहीं शत्रु ही नहीं है
बढ़िया जी, धन्यवाद!
ek shloki Ramayan:
आदौ रामतपोवनाद- िगमनं : Once Ram went to Forest
हत्वा मृगं काञ्चनं : (there) he chased and killed the Golden Deer
वैदेहीहर- ं जटायुमरणं : Meanwhile Sita (his wife) was abducted (by Ravana) and Jatayu (a bird) was killed
सुग्रीवस- म्भाषणम् : Ram spoke with Sugriva
बालीनिग- रहणं : Killed Bali (unrighteous brother of Sugriva)
समुद्रत- णं लंकापुरी दाहनं: Crossed the ocean and burnt Lanka (Ravan’s city)
पश्चाद्र- वण कुम्भकर्ण हनन: (Ram) Later killed Ravan and (his brother) Kumbhkaran
मेतद्ध- रामायणम्: This is the story of Ramayana
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